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भारतीय दर्शन और भौतिक
विज्ञान
भारतीय दर्शन : ऐतिहासिक
प्रमाणों से सुस्पष्ट विदित है कि प्राचीन-काल में भारत को संस्कृति और
समृद्धि के क्षेत्र में विश्व में सम्माननीय स्थान प्राप्त था। इसका
प्रमुख कारण ज्ञान के क्षेत्रों में उसकी प्रतिभा सम्पन्नता थी, चाहे
वह क्षेत्र विज्ञान का हो अथवा साहित्य का। वाङ्मय अथवा साहित्य की
परम्परा में 'वैदिकवाङ्मय' को सर्वाद्य प्राचीन साहित्य माना जाता है।
इत्याकारक सम्मान की प्रतिष्ठा से ही भारत विश्व के सम्मुख ज्ञानार्णव
के तितीर्षु अनुसंधित्सुओं हेतु प्रकाश स्तम्भ बन गया था। अब आधुनिक
विपश्चितों के मन में यह प्रश्नेच्छा बार-बार प्रतिध्वनित होती रहती है
कि 'प्राचीन भारत ने, भौतिकी के क्षेत्र में क्या कोई योगदान किया था?'
उपर्युक्त प्रश्नेच्छा का चिन्तन करने पर अवगत होता है कि सूत्रकाल
(ईसा पूर्व छठी शताब्दी 1 पूर्व) से वर्तमान समय तक
विभिन्न प्रकार के अध्ययनों में भारतीय दर्शन के सूत्र ग्रंथों का
भाष्य, व्याख्या, टीका एवं टिप्पणियों द्वारा बहुत प्रस्तार-विस्तार
हुआ है। किन्तु भौतिकी ज्योतिष, प्राणि-विज्ञान, रसायनशास्त्र,
शरीर-विज्ञान, औषधि-विज्ञान, स्थापत्य और अभियांत्रिकी इत्यादि भौतिकी
से सम्बद्ध वैज्ञानिक रचनाओं की वृद्धि जैसी आठवीं शताब्दी तक विपुल
रूप में प्राप्त होती है, वैसी प्रगति बाद की सदियों में परिलक्षित
नहीं होती। 'खगोल शास्त्र' भौतिकी की प्रमुख प्रयुक्त शाखा है, इस
विधा पर बहुत संख्या में वैज्ञानिक विवरण ग्रंथ उपलब्ध होते हैं, जो इस
शास्त्र के मूलभूत विचारों (Basic Concepts) को स्पष्ट रूपेण अभिव्यक्त
करते हैं। उदाहरणार्थ सूर्य सिध्दान्त 2 में, जो ईसा पूर्व का ग्रंथ
है, सूर्य और चन्द्रग्रहण सहित ग्रहों की गति (motion) की गणना की गई
है, जो आधुनिक खगोल शास्त्रीय गणनाओं के लगभग अनुरूप है। फिर भी अध्ययन
के प्राचीन प्रकारों का वैज्ञानिक अन्वेक्षण दोनों में एक आधारभूत एवं
दुर्बोध अन्तर स्पष्ट करता है, जिसका यथातथ्य अर्थ प्रस्तुत प्रबन्ध
में स्पष्ट हो सकेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। पूर्व में हम कह चुके हैं
कि विज्ञान और दर्शन शास्त्र एक दूसरे के पूरक हैं। भौतिकी प्राकृतिक
रहस्यों की, क्रमबद्ध और तार्किक पद्धति से गवेषणा करता है, परन्तु
जहाँ तक प्रकृति के अपह्नुत रहस्यों का प्रश्न है, उनका प्रकाशन दर्शन
शास्त्र और तत् सम्बद्ध साहित्य के द्वारा ही सम्भव है। इस हेतु भौतिकी
की सम्पूर्ण गवेषणा के लिये दार्शनिक दृष्टिकोण अपेक्षित है और
दर्शनशास्त्र में प्रवीणता हेतु एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण का होना अति
आवश्यक है। पूर्व कथित दर्शनशास्त्र एवं भौतिकी की पूरकता मान लेने पर
यह स्पष्ट हो जाता है कि, आज के वैज्ञानिकों द्वारा स्थापित आधारभूत
सिद्धान्त, प्राचीन भारत के गवेषकों द्वारा पूर्व से ही प्रतिपादित
सिद्धान्त हैं। इस हेतु यह आवश्यक हो जाता है कि पूर्वाचार्यों के
सिद्धान्तों का अध्ययन समकालीन गणितशास्त्र और आधुनिक वैज्ञानिक
उपकरणों के माध्यम से किया जाय। जिससे वैज्ञानिक अनुसंधान को एक अभिनव
दृष्टिकोण प्राप्त हो सकेगा। भौतिकी में गणित
की आवश्यकता(The Need of Mathematics in Physics) भौतिकी
के अध्ययन में गणित का ज्ञान आवश्यक है, यह एक अनिवार्य तथ्य है। दूसरे
शब्दों में कहा जा सकता है कि, गणित एक भाषा या माध्यम है जो भौतिकी के
सिद्धान्तों को लगभग पूर्ण यथार्थता और शुद्धता से अभिव्यक्त करता है।
तात्पर्य यह है कि, गणित शास्त्र में भौतिकी के तत्त्वों को पूर्णतया
व्यक्त करनें का सामर्थ्य है। भौतिकी में जब भौतिक राशियों (वस्तु:
matter, ऊर्जा: energy, दिक्: space और समय: time) के सम्बन्ध में नियम
प्रतिपादित करने होते हैं, तो अन्य भौतिक राशियों के साथ इनके सम्बन्ध
को अर्थपूर्ण गणितीय समीकरण में परिवर्तित करना होता है। तत्पश्चात्
इन्हें प्रायोगिक ढंग से प्रमाणित किया जाता है। तदनन्तर भौतिक राशियों
के परिप्रेक्ष्य में प्रयोगों द्वारा निकाले गये निष्कर्ष, सिद्धान्तों
या नियमों का प्रतिपादन करते हैं। इस प्रकार भौतिकी की गवेषणाओं के
यथार्थ आकलन के क्रम में यह उचित होगा कि गणित के सम्बन्ध में भी कुछ
शब्द कहे जायें।गणित अंकों और अमूर्तता (abstractness) का विज्ञान है,
जिसमें तर्क के आधार पर नियमों का गठन किया जाता है और उनके जोड़
(addition), घटाव (substraction) इत्यादि के लिये तर्क के सुदृढ आधार
(भारतीय दर्शन की न्यायशाखा) पर नियमों का प्रतिपादन किया जाता
है। अत: हम कह सकते हैं कि गणित, तर्क (न्याय: सवहपब) की एक कला
(art) है। वस्तुत: जब भी कभी किसी भौतिकराशि (अमूर्त) को परिभाषित अथवा
प्रतिपादित करने के लिये तर्क (न्याय) की आवश्यकता उपस्थित होने पर
गणित द्वारा ऐसा किया जा सकता है। इसी हेतु गणित के तार्किक
(न्यायशास्त्रीय) विश्लेषण की चर्चा अपरिहार्य हो जाती है, जैसा पंचम
परिच्छेद में किया जायेगा। भौतिकी की
परिभाषा(The Definition of Physics) 3 भौतिकी "विज्ञान की वह
शाखा है, जिसका उद्देश्य प्राकृतिक घटनाओं के व्यवहार का भविष्य बताने
की योग्यता, प्रेक्षणों और अनुभवों द्वारा प्रतिपादित नियम-पद्धतियों
की सहायता से सम्पादन करना है।" भौतिकी एक परिमाणात्मक विज्ञान
(Quantitative Science) है। भौतिकी की दो प्रमुख शाखाएँ हैं- (अ)
प्रायोगिक एवं (ब) सैद्धान्तिक; प्रायोगिक भौतिकी प्रेक्षणों और
प्रयोगों की वह शाखा है, जो प्राकृतिक प्रक्रिया एवं तत् सम्बन्धी
प्रणालियों के व्यवहार का वास्तविक और यथार्थ ज्ञान प्रदान करती है।
सैद्धातिंक शाखा, अनुमापित राशियों के मध्य एक परिमाणात्मक सम्बन्ध की
पद्धति का निर्माण करती है और इन सम्बन्धों को गणित की सहायता से
भौतिकी के नियमों के रूप में प्रतिपादित करती
है।'' **************************************** References 1 Founder of Sciences in Ancient
India -Satya Prakash, pp. ३०२. 2 Founder of Sciences in Ancient
India- Satya Prakash, pp. ५४२ 3 The branch of science which sets as
its object the ability to predict the behaviour of natural
phenomenon with the help of a system of laws derived from
observations and experiences. Physics is a quantitative science.
There are two main branches of Physics: (A) Experimental and (B)
Theoretical (A) is a science of observation and experiment which
give accurate knowledge of actual behaviour of natural systems. (B)
builds up a system of quantitative relations among measured
quantities and formulates these relations with the help of
mathematics into physical laws. The World University Encyclopedia
Vol. ९, Publishers Company-Inc, Washington. | |